राघव की कहानी (हमनीटीएस का छात्र)

राघव इस बात का जीता जागता उदाहरण है कि कछुआ कैसे दौड़ जीत सकता है। सफलता की कुंजी केवल कड़ी मेहनत नहीं बल्कि निरंतरता भी है। राघव ने ग्‍यारहवीं कक्षा से ही UPSC की तैयारी शुरू कर दी थी। यह मानविकी का छात्र था और एक दिन में अठारह घंटे की पढ़ाई में भरोसा नहीं करता था। नियमितता और जिद़ ही इसका मंत्र था। वह हर रोज पूरा एक घंटा खबरों में गुजारता था और कुछ समय मौजूदा टॉपिक पर एक या दो निबंध लिखने या उसने जो उस समय जो पढ़ा है उस पर अपने विचार लिखने में खर्च करता था। उसके बाद, वह हर रोज एक घंटा UPSC से संबंधित NCERT की किताबें जैसे कि कहानी की किताबों को पढ़ने पर खर्च करता था।

वह सिलेबस जो दूसरों को खतरनाक समुद्र की तरह लगता है समय के साथ वह उसके लिए एक स्विमिंग पूल बन गया। वह परीक्षा के लिए गंभीरता से तैयारी करने के लिए परिपक्‍व हो गया था। जब कोई एक ही किताब को पांच सालों तक पढ़ें तो स्‍वभाविक है कि वह उसमें माहिर हो जाएगा। यही उसकी सफलता का राज था।

चार साल के ग्रेजुएशन के अपने दूसरे साल के बाद राघव ने एक UPSC कोचिंग सेंटर ज्‍वाइन किया। इन अंतिम दो साल में उसने जमकर पढ़ाई की, धीरे-धीरे आईएएस परीक्षा के लिए अपने समय को बढ़ाता चला गया। उसने अपनी पढ़ाई की आदत को बनाए रख और तैयारी के अंतिम साल में जहां दूसरे छात्र अंतिम समय में पढ़ने के लिए नई चीजों को खोजते हैं, वह शांति से अभ्‍यास करता रहा और चीजों को दोहराता रहा।

वह बाईस साल की उम्र में परीक्षा देने के लिए बैठा। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं थी कि वह अपने पहले प्रयास में ही पास हो गया और भारतीय प्रशासनिक सेवा के लिए चुना गया। उसने कहा, “मैंने एक कहावत को ध्यान में रखा, जिसने मेरा जीवन बदल दिया - करत-करत अभ्यास ते जड़मति होत सुजान यानि कि अभ्‍यास व्‍यक्ति को पूर्ण बनाता है। मैंने तैयारी के अंतिम वर्ष में बहुत अधिक इतना अभ्‍यास किया कि असल परीक्षा मुझे अभ्‍यास से अधिक कुछ नहीं लगा। आपको अभ्‍यास को एक आदत बना लेनी चाहिए और इसके लिए आपको मजबूर होने की जरूरत नहीं है। यह आपके भीतर से आना चाहिए। और मैं आपको बताना चाहता हूं कि यह काम करता है!”